बूढ़त काल में खेती ल रेंढ़त हस। ते हमला कहिबे न ददा, जा बेटा बुधारू भारा करपा खेती-खार मे परे हे, गाड़ा पीढ़ा खोज के लान डार अऊ धान-पान ल मिंज डार।
हमन तो नी जा सकन ददा। चाहे कोनो चोराय, चाहे कोनो लुकाय। बुधारू अपन बाप ल खिसिया-खिसिया के काहत रथे।
बुधारू के पुर्रू ददा ह खेती खार ल परे डरे देखे त ओकर मन ल रोआसी आ जथे। अतका खरचा पानी करके धान-पान ल बोए हन अउ आए दिन में दूसर मन ह लेग जही- चोरा लीही त हमर मेर सुक्खा पैरा, भूसा आय के सिवाय अउ का आही जेकर ले जीवन चला सकबो। धान-पान सकला जही त लोग लइका के खाय पीए बर दू चार महीना ले पूर जही जेकर ले आनंदपूर्वक जीवन गुजरही। इही ल सोच के पुर्रू ह बुधारू ल तियारत रथे कि आय दिन में ढेरियाना अच्छा बात नो हे। फेर पुर्रू ह कथे- ‘कई घांव ले तोला चेताय रेहेंव ना ददा, खेती -खार ल बेच के गाड़ी लेबो, सवारी बैठारबो, अउ नगदी रुपिया पाबो, फेर तेंहा तो भैरा बन गे हस, बात ल नी सुनस, अउ नई मानस, जा ना अब खेती-खार के धान-पान ल सकेल अउ लान। हमला कइही त नी जानन। मरो जिओ ले कमा के कोन भूख मरे।’ बुधारू ह पुर्रू बर भड़क के कथे, नी ‘कमा सकत त बेच ना गा खेती खार ल अउ मोर बर गाड़ी ले दे। तोला में हा रोज दिन कमा-कमा के पइसा नई धराहूं त कहिबे।’ बुधारू के बात मान के पुर्रू खेतीखार ल बेच के बुधारू बर सवारी गाड़ी ले देथे। गाड़ी पा के बुधारू ह रोज दिन दौड़ाथे। सुरू-सुरू में ददा ल पइसा धराईस। फेर पइसा के किल्लत होत गीस। डीजल-पेट्रोल में अतका खर्चा बैइठीस कि हाथ मं दू पैसा बचना मुश्किल होगे। उप्पर ले पुलिस वाला मन तंग करे। सवारी मन संग झगरा होय। गाड़ी ह फलीत नी होवत हे ये बात ल बुधारू ह जानत रीहिस। इही बीच मे गाड़ी ह अब्बड़ अकन खर्चा मांगिस। गाड़ी बिगड़गे, बनाय बर पइसा राहय तब तो गाड़ी ल बनातीस? गाड़ी ल रखे-रखे जंग लगगे। खेती खार बेचागे। बुधारू के ददा पुर्रू ह सदमा ल नी सही सकीस तहां ले मर गे। बुधारू के डौकी ल खाय-पीए बर तकलीफ होइस तहां ले ऊंहा ले भगा के दूसर ल बना लीस। बुधारू देखते रहिगे। बुधारू के दाढ़ी मेछा बाढ़गे। एक दिन बुधारू बिन खाय पीए भूखे पियासे सड़क ल पार करत रथे तइसने में चक्कर का अइस एक ठन गाड़ी के नीचे आ के अपने जीवन ल गंवा डरीस।
मोहन लाल घिवरिया
सिर्री कुरूद